रैबार

Thursday, 21 May 2015

क्य ह्वै म्यरा पहाड़ kya hwai myra pahad





















जु डांडा कबि गीत लान्दा था
आज सि द्यै लगान्दी रैगे
जु चाँटा कबि मन हरि लेन्दा था
आज अप्पु हि हरयां रैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

जींक कबि फूलों कि घाटी बोल्दा था
आज वख कांडों का बगवान ह्वैगे
जींक सब्बि द्यबतों भूमि बोल्दा छा
आज स्य भूमि समलोणया  रैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

जड़ी बुटि जख खजाणु बतोन्दा था
आज उ सारू खजाणु घाम लैगे
चौरासी जुग्गों जख उत्थान बतोन्दा था
भरुषु आज ये जुगा कु नि रैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

बीर भाढ़ो कु जख देस बोल्दा था
आज वे देस छूड़ी परदेस नैगे
जख कबि बीरू मा बीर होन्दा था
आज स्यु सारु मुल्क रितु ह्वैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

जख कबि द्यबतों बास होन्दु थो
आज वख मनख्यूं पर बास  एैगे
जख कबि पंडों की थात होंदी थै
आज वख कोरों कु राज छैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

जख कबि थोळा मेळा होन्दा था
आज वख रोळा ही रोळा छैगे
जख कबी बार तिवार मनोन्दा था
आज वख दारु हि तिवार  रैगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

जख कबि चाँटों मा ह्युं रंदु थो
आज सि चाँटा घामन फुकैगे
जख  धारों मा ठंडो पाणी रंदु थो
आज सी धारा भि सफ्फा सुकिगे
क्य ह्वै म्यरा पहाड़ त्वै क्या ह्वैगे

               प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित