औ धौं तोड़ी मेरि आस ,
रै गेन अब आखिरि सांस !!
ब्याळी तक थौ हरु भरु ,
आज जमीं छ सूखि घास !!
द्यो द्यबता पूज्येनि मिन ,
जरा नि पाई कैकु जस !!
सारू त्यारू अब रैगी सिरप
बाकि कैकु नि रै बिस्वास ॥
ऐजा झट अर भुझै दे अब ,
म्यरा जिकुड़ा की प्यास ॥
प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित