तेरि खुद लगदी मैं भारी,
ओखि बिंडी म्यारी लाचारी !!
बडुलि लगदी मी घुटि-घुटि,
पर क्या कन य पापी ड्यूटी,
घर औणा मन बोल्दु,
पर मिलदी नि जरा सी छुट्टी,
उनि दींदू मैं मन तैं मारी!!
परदेसी मुलुक बडू दूर छन,
त्वै बिगर कतै मणदु नि मन,
क्या जी कैमा जरा भि ब्वन,
भेद कैमा मन कु ख्वन,
क्वी नि छ अपड़ो हितकारी !!
भग्यान नि छ हमारू भाग,
अपड़ी सग्वाड़ी भि नी छ साग,
अधूरा छ हमारा सी राग,
आजुं होलि खुजाणि कति जाग,
या जाग आग द्यो न कखि मारी !!
तेरि खुद लगदी मैं भारी,
ओखी बिंडी म्यारी लाचारी !!
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