रैबार ( raibar )
गढ़वाली कविता अर गीत . प्रभात सेमवाल ( अजाण )
रैबार
Thursday, 7 June 2012
रात भि rat bhi
रात भि अपणी नि सुपिन्याँ भि अजाण !
कनक्वे बचोण बथोन सि
अपड़ी कागजो की दुकान !!
निन्ध भि बिराणी छ ,आंख्यों कि क्य लाण !
जों निभै नि दगड़ू बर्षों सि
ओं आज क्या दगडु निबाण !!
प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित
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