रैबार

Thursday, 21 May 2015

कनक्वै होलु बिकास जी










बुयां फुण्डत नजर नि पड़दी
सोचदा ऊँचा अगास की
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

गंगा रुक्यै गै डांडा कट्यै गै
डांडा कट्यै गै गंगा रुक्यै गै
बण हरु नि डाइयों सी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

जमीं विजवाड़ मा डांडू पढ़द
सियुं मनखी नि उठद
क्या करू यकुली क्वी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

घर बार सब्बि छुड़ि नैग्या
समलौण्या गौं ई रैग्या
क्या कन आस औणा की
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

फौन पंछी भी परदेस
आई कुजाणि कनि या मेस
गढ़ म्यारु छूटि गी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

देव भूमि म्यारी य प्यारी
लगणी अपड़ो सि हारीं
जाणी क्या आज इंतैं ह्वैगी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

भ्रष्टाचारि यख विचारी
गौं बाज़ार राज़ सारी
सब्बि कना सब्बि ब्वना छी
 ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

नेता हमतें लुटदि रैगी
म्यरा भायों तुम क्या ह्वैगी
अबि लुटला और भी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

सुखि सुपिन्या हमुन दीखि
बस दिखदी ही रैगी
कबि पूरा हूला सोचणु छों मी
ईन छ हाल म्यरा पहाड़ का
कनक्वै होलु बिकास जी

               प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित