रैबार

Thursday, 21 May 2015

सदानि ही खैरी खाई
















पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई

छुटा मा त्वै ख्याल खिलाई
हाथ पकड़ी हिटणु सिखाई
अपु रै भुखा त्वै खाणु दयाई
त्यरा बाना कु बिपदा नि खाई
पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई


अपु रै नंगा त्वै तेन पैराई 
हूंद क्या दुन्या त्वै बताई 
भल्ला बुरा फरक बिगाई 
त्यरा बाना किक्या नि काई 
पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई 


थ्वड़ा बडू ह्वै स्कुल पढ़ाई 
द्याड़ी  कै तेन फीस पुरयाई 
बडु बणलु मन सणि बुंथ्याई 
पर तू भारी निरदै  निठुर छाई 
पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई 


हे बिधाता कनु जोग रंचाई 
अपणु खून बिराणु ह्वै ग्याई 
बगत कन्नु यु निर्दे निठुर आई 
बिपदा कु भार माथा ल्याई 
पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई 


सोचदै सारि उमर कटै ग्याई 
आंखि बाटु द्याखदी रै ग्याई 
वैकि कुछ खबर नि आई 
म्यारु सुपिन्यु सुपिन्यु रै ग्याई 
पाई पोषी बि सुख नि पाई
सदानि ही खैरी खाई

                   प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित