रैबार

Sunday, 27 May 2012

बरखी नि पाई barkhi ni paai



मन मा माया थे घनाघोर पर कभि बरखी नि पाई

कभि मैन बोली नि पाई कभि स्य समझी नि पाई


प्यार पारणों सि ज्यादा थो वीं कभि देखि नि पाई

कुछ मै दिखाणु नि आई कुछ  वीं देखुणु नि चाई


  फिर बक्त बदली उ काटियों बक्त फिर बोड़ी नि आई

आज स्य भि समझी ग्याई अर मै भि समझी ग्याई

       पर अब न व मेरी राई न मै विंकू राई. .

          प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित