रैबार ( raibar )
गढ़वाली कविता अर गीत . प्रभात सेमवाल ( अजाण )
रैबार
Wednesday, 7 September 2011
समझी नि पै samjhi ni pai
स्यु रुलान्दी गै
और मै रौंदी रै !
मैन कभि
बोलि नि पाई
स्यु भि समझी नि पै !!
प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित
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