रैबार

Thursday 21 May 2015

सात समोदर पार




















सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार
बोड़ी ऐजा झठ बोड़ी
बोड़िक तें घोर

राजी खुशी भैजी देन्द
गौं गळाकि म्यरा
दूर देस राजी रै तु
ओंद जांदा फ्यरा
सदानि भंरया रो त्यरा
भाग का कुठार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार

त्वै बिना सुन्नु लगदु
सारू घोर बोण
वनि चौमास लग्युं अबारी
बरख्याउ सोण
त्यरा बिगर सुक्खि लगणी
हरी भरी सार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार

घुघती बासणी डाली
खुद लगणी भारी
डाइयों खिल्यां फुलों द्याखि
याद ओणी त्यारी
त्यरा बिगर जरा नि रयुं
मन मा उलार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार


होंदा जू पंखुड़ म्यरा
उड़ी ओंदु अगास
खैरी मन की सुणै देंद
बंधिक तें आस
बोलि देंद मन की बात
निकाई मन की डार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार

क्वांसु पराण तिसाळु मन
बैठ्यों छ उदास
कब आलु बोड़िक तेन
कैन द्यण सास
बंधिक नि बधिन्दि धीर
द्याखि फुलों फुलार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार

दिन रात मन बस
त्यारी छ जाग
त्वै बिगर म्यरा पराणी
अधुरु छ राग
अबत त्यारी खुद छ म्यरा
ज्यूणा कु अधार
सात समोदर पार
औन्दु बाडुलि मा रैबार

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